नागौरी पान मैथी को मिला जीआई टैग ; पाकिस्तान के कसूर से बीज लाकर नागौर में शुरू हुई खेती


नागौरी पान मैथी को हाल ही में भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग प्राप्त हुआ है, जिससे इसकी वैश्विक पहचान और किसानों को बेहतर आर्थिक लाभ की उम्मीद बढ़ गई है। यह राजस्थान के नागौर जिले की प्रसिद्ध फसल है, जिसे कसूरी मैथी के नाम से भी जाना जाता है। इसकी अनूठी सुगंध, स्वाद और औषधीय गुणों के कारण यह देश-विदेश की रसोई में खास जगह रखती है।

जीआई टैग की प्रक्रिया :

नागौरी पान मैथी को जीआई टैग दिलाने के लिए पिछले चार साल से स्थानीय प्रशासन के प्रयासों के बाद केंद्र सरकार ने इसे मसाला बोर्ड की सूची में शामिल किया। 3 जून, 2025 को भारत सरकार ने इसे आधिकारिक रूप से मसाला बोर्ड की अनुसूची-1 में 53वें मसाले के रूप में जोड़ा, जिससे जीआई टैग का रास्ता साफ हुआ।

प्रयास और समर्थन :

नागौर के सांसद हनुमान बेनीवाल और खींवसर विधायक रेवन्त राम डांगा ने लोकसभा और विधानसभा में इस मुद्दे को बार-बार उठाया। जिला कलेक्टर अरुण कुमार पुरोहित ने फरवरी 2024 में एक कमेटी गठित की, जिसमें कृषि मंडी सचिव रघुनाथ राम सींवर और कृषि कॉलेज के प्रोफेसर विकास पावड़िया शामिल थे। इस कमेटी ने जीआई टैग के लिए आवेदन प्रक्रिया को पूरा किया।

कृषि और आर्थिक महत्व : 

नागौर के मूंडवा, खींवसर, और मेड़ता तहसीलों में उगाई जाने वाली पान मैथी की मांग देश-विदेश में बढ़ रही है। जीआई टैग मिलने से किसानों को उचित दाम और निर्यात में बढ़ोतरी की उम्मीद है। नागौर में 100 से अधिक मैथी प्रोसेसिंग यूनिट्स हैं, जो हर साल टनों मैथी पैक कर बाजार में भेजती हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि नागौर की मिट्टी और जलवायु इस मैथी को विशिष्ट बनाती है। मृदा सैंपल और पौधों की प्लांट फीजियो अध्ययन से इसकी अनूठी विशेषताओं का पता लगाया जा रहा है।

इतिहास :

1970 के दशक में एमडीएच मसाला कंपनी के संस्थापक महाशय धर्मपाल गुलाटी ने पाकिस्तान के कसूर से इसके बीज लाकर नागौर में खेती शुरू करवाई थीस्थानीय किसानों ने इसे पारंपरिक खेती के तरीकों से अपनाया, जिससे यह क्षेत्र की पहचान बन गई। इसे कसूरी मैथी भी कहा गया। कसूर की मैथी अपनी विशेष सुगंध और स्वाद के लिए जानी जाती थी, और नागौर की मिट्टी व जलवायु इसके लिए उपयुक्त पाई गई।

जीआई टैग के फायदे :

जीआई टैग से नागौरी पान मैथी की वैश्विक ब्रांडिंग होगी, जिससे नकली उत्पादों पर रोक लगेगी। किसानों को बेहतर मूल्य मिलेगा, और निर्यात में वृद्धि होगी। नागौर के अलावा जोधपुर के मथानिया में भी इसकी खेती होती है, जिसे अब जीआई टैग का लाभ मिलेगा। यह उपलब्धि नागौर के किसानों और व्यापारियों के लिए गौरव का विषय है, जो अब अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी पहचान और मजबूत करेंगे।