" बीहड़ में तो बागी होते है डकैत मिलते है पार्लियामेंट में", नेशनल चैंपियन और सैनिक पान सिंह तोमर के बागी बनने की कहानी


कभी - कभी वक्त और हालातों के आगे मजबूर बेबस इन्सान को क्या नहीं करना पड़ता है. मार्च 2012 में एक फिल्म रिलीज हुई थी पान सिंह तोमर. फिल्म का एक डायलॉग “ बीहड़ में तो बागी होते है डकैत मिलते है पार्लियामेंट में ” बहुत अधिक चर्चित रहा.

तिग्मांशु धूलिया के निर्देशन में बनी इस फिल्म में अभिनेता इरफ़ान खान ने पान सिंह तोमर का किरदार निभाया. कम बजट में बनी इस फिल्म को दर्शको द्वारा खूब पसंद किया गया. इस फिल्म ने राष्ट्रीय फिल्म पुरुस्कार सहित कई अन्य पुरुस्कार भी जीते.

यह फिल्म भारतीय एथलीट और सैनिक पान सिंह तोमर की रियल लाइफ पर बनी है. पान सिंह तोमर का जन्म मध्यप्रदेश के मुरैना जिले के भिडोसे गाँव में हुआ था. पान सिंह तोमर 1972 तक भारतीय सेना का हिस्सा रहे और सेना में भर्ती होने के बाद पान सिंह तोमर एथलीट बने. पान सिंह तोमर गरीबी मिटाने के लिए सेना में भर्ती हुए और फिर भूख मिटाने के लिए रेस ट्रैक पर दौड़े.

सेना में रहते हुए पान सिंह स्टेपलचेज रेस में सात बार नेशनल चैम्पियन बने थे और 1958 के एशियन गेम्स में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व किया था. भारतीय सेना का जवान और खेल का चमकता सितारा सेना से रिटायरमेंट के बाद भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाते उठाते एक दिन बागी बन गया.

पान सिंह 1972 में रिटायरमेंट लेकर गाँव लौट आए थे और यही से उनके बागी बनने की कहानी शुरू हुई. दरअसल पान सिंह जब गाँव लौटे तो भ्रष्ट सिस्टम का शिकार हो गए. उनके रिश्तेदारों ने उनकी गाँव की जमीन हड़प कर उस पर कब्जा कर लिया था. पान सिंह ने इसका विरोध किया और पुलिस में अपनी शिकायत दर्ज करवायी लेकिन उनकी सुनवाई नही हुई.

पान सिंह अपनी शिकायत लेकर जिला कलेक्टर तक गए. पान सिंह ने यह भी बताया कि वो भारतीय सेना में सेवा दे चुके है और एथलीट के रूप में देश के लिए कई मेडल भी जीत चुके है मगर भ्रष्ट व्यवस्था के आगे प्रशासन ने उनका किसी प्रकार से सहयोग नहीं किया. और विरोधियों ने उनकी माँ की हत्या कर दी.

ऐसे में भ्रष्ट व्यवस्था के आगे बेबस पान सिंह तोमर बागी हो गए और अपना बदला लेना शुरू कर दिया. पान सिंह ने कभी खुद को डकैत नहीं माना बल्कि वो खुद को बागी कहना पसंद करते थे. पान सिंह जब बागी होकर चम्बल के बीहड़ भटक रहे थे तब उनके बड़े बेटे शिवराम भारतीय सेना में थे.

अक्तूबर 1981 में पुलिस एनकाउंटर में पान सिंह को मारा गया. ऑपरेशन में पुलिस और पान सिंह तोमर गैंग के बीच करीब बारह घंटे तक चली फायरिंग के बाद पुलिस को सफलता हासिल हुई थी.