घुड़ले रे बांध्यौ सूत घुड़लो घूमैला जी घूमैला


होली के कुछ दिन बाद मारवाड़ ( जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर इत्यादि ) में घुड़ला पर्व शुरू होता है. दरअसल मारवाड़ क्षेत्र में चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी से लेकर चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तक घुड़ला त्यौहार मनाया जाता है. इस त्यौहार को लेकर बालिकाओं में अत्यधिक उत्साह होता है.

घुड़ला, छेद किया हुआ मिट्टी का एक घड़ा होता है. इसके अंदर एक जलता हुआ दीपक रखा जाता है. इस त्यौहार के दौरान शाम के वक्त महिलाएँ व बालिकाएँ एकत्रित होकर सिर पर घुड़ला रखकर अपने गली मोहल्ले में घूमती है. और परिचितों के यहाँ घुड़ला लेकर जाती है.

मान्यता के अनुसार बालिकाएं जिस किसी के यहाँ भी घुड़ला लेकर जाती है तो उस घर की महिलाएँ उनका अतिथि की तरह आदर सत्कार करती है. घर में सुख शान्ति बनाये रखने की प्रार्थना करते हुए घुड़ले को चढ़ावा देती है. घुड़ला लेकर चलती हुई बालिकाएँ लोकगीत गाती हुई चलती है. इन लोकगीतों में वो सुख शान्ति की कामना करती है.

घुड़ला मारवाड़ क्षेत्र की लोक आस्था का विषय है. हालाँकि यह प्रथा अब धीरे - धीरे कम भी हो रही है. घुड़ला प्रथा की शुरुआत 1490 ई. में हुई थी. जब मारवाड़ ( जोधपुर ) में राव जोधा के पुत्र राव सातल का राज था. और दिल्ली के तख्त पर मुगलों का राज था.

राजस्थान में गणगौर उत्सव बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है. मारवाड़ पर उन दिनों मुगलों द्वारा आक्रमण किये जा रहे थे. एक बार अजमेर के सूबेदार मल्लू खां ने अपने साथी सिरिया खां और घुड़ले खां के साथ मारवाड़ पर आक्रमण किया. रास्ते में उसने देखा कि सुहागिन महिलाएँ गणगौर की पूजा कर रही है. मल्लू खां उन महिलाओं को कैद करके अजमेर की ओर रवाना हो गया.

यह ख़बर जब मारवाड़ के राजा राव सातल के पहुंची तो राव सातल ने अपनी सेना के साथ मल्लू खां का पीछा किया. राव सातल की सेना ने जल्द ही मल्लू खां को घेर लिया. बदकिस्मती से मल्लू खां व उसके अन्य साथी भाग निकले लेकिन घुड़ले खां मारा गया.

महिलाओं को मल्लू खां के चंगुल के छुड़ा लिया गया. राव सातल के सेनापति सारंग जी ने घुड़ले खां का कटा हुआ सिर राव सातल के समक्ष प्रस्तुत किया. राव सातल ने घुड़ले खां का कटा हुआ सिर मल्लू खां के चंगुल से आजाद करवायी गयी महिलाओं को सौंप दिया.घुड़ले खां का कटा हुआ सिर लेकर महिलाएँ रात भर पूरे गाँव में घूमी. इस घटना की स्मृति में घुड़ला एक त्यौहार के रूप मनाया जाने लगा. घुड़ला का त्यौहार मारवाड़ में लोक आस्था का विषय बन चुका है.

घुड़ले के आयोजन के लिए महिलाए कुम्हार से कोरा मिट्टी का घड़ा लाकर उस पर सूत बांधती है. फिर घड़े में बहुत से छेद करके उसमें जलता दीपक रखा जाता है. मटके में किये जाने वाले छेद घुड़ले खां के सिर में लगे घावों का प्रतीक समझे जाते है. फिर सुहागिन स्त्रियाँ व बालिकाएँ इस घड़े को लेकर घुड़ले का लोक गायन करते हुए गली मोहल्ले में घूमती है.