विवादों में रहे ई. वी. रामासामी पेरियार की कहानी


पेरियार ई. वी. रामासामी द्रविड़ आन्दोलन के प्रणेता और सामाजिक क्रान्तिकारी, एशिया के सुकरात नाम से विख्यात है. पेरियार का पूरा नाम इरोड वेंकट रामासामी नायकर था. तमिल भाषा में पेरियार का अर्थ है सम्मानित व्यक्ति. इसलिए उनके चाहने वाले उन्हें पेरियार नाम से संबोधित करते है. पेरियार को लेकर देश में में कई विवाद हो चुके है. इस बारे में दक्षिण और उत्तर भारत का नजरिया अलग - अलग है.

खास तौर से उत्तर भारत में हिन्दी पट्टी के लोग पेरियार को एक खलनायक के रूप में देखते है. दरअसल इसके पीछे की वजह पेरियार की पुस्तक सच्ची रामायण को माना जाता है. वर्ष 1968 में पेरियार की किताब रामायना : ए ट्रू रीडिंग का हिन्दी अनुवाद सच्ची रामायण नाम से प्रकाशित हुई.

सच्ची रामायण के प्रकाशन के बाद विवाद शुरू हो गया और विरोधी सडको पर उतर आये. विरोध के चलते तत्कालीन उतरप्रदेश सरकार ने दबाव में आकर दिसम्बर 1969 को धार्मिक भावनाएँ भडकाने के आरोप में किताब की प्रतियों को जब्त कर लिया गया.

मामला बाद में हाईकोर्ट में गया और जनवरी 1971 में कोर्ट ने जब्ती का आदेश निरस्त करने के साथ ही सरकार को जब्त प्रतियाँ लौटने और अपीलकर्ता को मुकदमे के खर्चे हेतु तीन सौ रुपये भुगतान का आदेश दिया.

तत्कालीन सरकार ने हाईकोर्ट के इस निर्णय के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील की जिसका फैसला सितम्बर 1976 को आया. सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाईकोर्ट के निर्णय को यथावत ही रखा गया. दरअसल आरोप यह था कि सच्ची रामायण हिन्दू धर्म को भावनाओ पर प्रहार करती है और इस पुस्तक में राम एंव अन्य दैवीय चरित्रों को खलनायक के रूप में बताया गया है.

एक धार्मिक हिन्दू द्रविड़ परिवार में पैदा हुए पेरियार नास्तिक व पूर्ण रूप से धर्म विरोधी थे. पेरियार अपनी राजनीति के शुरुआत के दौर में कांग्रेस से जुड़े. एक समय पेरियार कट्टर गांधीवादी थे. क्योंकि वो गाँधी की शराब विरोधी, खादी और छुआछूत मिटाने की जैसी नीतियों से बहुत प्रभावित थे.

केरल में दलितों को मन्दिर में प्रवेश दिलाने और मंदिर तक जाती सडको पर चलने के अधिकार दिलाने के आन्दोलन वायकॉम सत्याग्रह का पेरियार ने नेतृत्व किया था और सत्याग्रह अहम भूमिका निभायी थी. हालाँकि बाद के समय में पेरियार ने कांग्रेस को छोड़कर नई जस्टिस पार्टी बना ली थी. 

पेरियार को एशिया का सुकरात कहा जाता है. पेरियार ने बाल विवाह के उन्मूलन, विधवा विवाह और एक संतान व शिक्षा इत्यादि के लिए अभियान चलाया. पेरियार हमेशा तर्कवादी, दलित वंचित शोषितों, नास्तिको एंव नारीवादी के समर्थक रहे. उन्होंने अपनी बहन और पत्नी को भी राजनीति से जुड़ने के लिए प्रेरित किया.

तमिलनाडु की राजनीति में पेरियार आज भी बहुत प्रासंगिक है. पेरियार को तमिलनाडु के द्रविड़ आन्दोलन का जनक कहा जाता है. आज भी उतर भारत में पेरियार का नाम दक्षिण भारत की तुलना बेहद कम लिया जाता है.