तिलका मांझी : आज़ादी का पहला नायक


भागलपुर में तिलका मांझी के नाम पर तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय है लेकिन आजाद भारत के इतिहास में तिलका के बारें बहुत कम उल्लेख मिलते है. दरअसल तिलका मांझी एक गुमनाम नाम है बहुत कम लोग तिलका मांझी के नाम से परिचित है. तिलका मांझी का जन्म 11 फरवरी 1750 को बिहार के सुल्तानगंज में हुआ था. और 13 जनवरी 1785 को अंग्रेजी हुकुमत में तिलका मांझी को बरगद के पेड़ से लटका कर फांसी दे दी गई थी.

जब भी स्वतंत्रता संग्राम की बात आती है तो मंगल पाण्डेय को भारत की आज़ादी के लिए शहीद होने वाले पहले शहीद के रूप में याद किया जाता है. लेकिन मंगल पाण्डेय के जन्म से करीब 42 वर्ष पूर्व 1785 में तिलका मांझी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ़ आजादी के लिए लड़ते हुए शहीद हो गए थे. तिलका मांझी एक आदिविद्रोही जिसने अंग्रेजी हुकूमत के साथ ही जमींदारों की भी नींद उड़ा दी थी.

तिलका मांझी का असली नाम जबरा पहाड़िया था. आदिविद्रोही तिलका ने आदिवासियों की जमीन और जंगल को बचाने के लिए अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ़ विद्रोह किया. पहाड़िया भाषा में तिलका का अर्थ गुस्सैल व्यक्ति से है. तिलका ग्राम प्रधान थे और पहाड़िया भाषा में ग्राम प्रधान को मांझी कहकर संबोधित करने की प्रथा है. तिलका मांझी को ये नाम अंग्रेजो ने ही दिया था इसलिए जबरा पहाड़िया तिलका मांझी के नाम से विख्यात हो गए. जबकि अंग्रेजी काल के दस्तावेज़ो में तिलका मांझी की जगह जबरा पहाड़िया नाम का ही उल्लेख मिलता है.

तिलका की लड़ाई अंग्रेजी हुकूमत और स्थानीय जमींदारो दोनों के खिलाफ़ थी. तिलका मांझी आदिवासियों के प्राकृतिक संसाधन जल, जंगल और जमीन बचाने के लिए अंग्रेजी शासन के अन्याय और अत्याचार के खिलाफ़ विद्रोह कर रहे थे. तिलका न कभी झुके और ना ही डरे इसलिए उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के सामने समर्पण नहीं किया. तिलका ने पूरे अंग्रेजी शासन की नींद उड़ा रखी थी.

तिलका ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ़ 1771 से 1784 के बीच लम्बे समय तक संघर्ष किया. 1784 में भागलपुर के कलेक्टर क्लीवलैंड की हत्या करने के बाद अंग्रेजो ने तिलका की आदिवासी गुरिल्ला सेना पर हमला करके तिलका को गिरफ्तार कर लिया. और तिलका को घोड़ो के पीछे बांधकर घसीटते हुए भागलपुर लाया गया था.

कुछ समय जेल में रखने के बाद आदिवासी समुदाय में दहशत पैदा करने के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने भीड़ के सामने भागलपुर चौराहे पर खुलेआम बरगद के पेड़ से लटका कर तिलका को फांसी दे दी गई थी. तिलका मांझी को इतिहास में समुचित तरीके से दर्ज नही किया गया. तिलका को आधुनिक भारत का पहला आदिविद्रोही कहा जाता है. आज भी आदिवासी समुदाय के लोग लोकगीत जरिए तिलका मांझी को याद करते है. बांग्ला लेखिका महाश्वेता देवी ने बांग्ला भाषा में तिलका मांझी के जीवन पर आधारित ‘शालगिरर डाके’ नाम से उपन्यास भी लिखा है.