जब कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने राष्ट्रीय अध्यक्ष की धोती खींच ली


बिहार से आने आने वाले सीताराम केसरी स्वतंत्रता सेनानी रहे और आज़ादी के आन्दोलन में जेल भी गए . साल 1996 में नरसिम्हा राव के इस्तीफ़े के बाद केसरी कांग्रेस के अध्यक्ष बने. केसरी के अध्यक्ष बनने से पहले कांग्रेस नरसिम्हा राव के नेतृत्व में 1995 का चुनाव हार चुकी थी. केसरी इंदिरा गाँधी , राजीव गाँधी और नरसिम्हा राव की सरकार में केन्द्रीय मंत्री भी रहे.

साल 1998 के मध्यावधि चुनाव में सोनिया गाँधी कांग्रेस में सक्रिय हुई. सोनिया गाँधी ने देश भर रैलियां संबोधित की लेकिन कांग्रेस को केवल 142 सीट ही मिली. कांग्रेस के कई बड़े नेता भी चुनाव हार गए और इस हार का ठीकरा फोड़ा गया सीताराम केसरी के ऊपर जबकि पूरे चुनाव में केसरी ने एक भी चुनावी रैली संबोधित नहीं की थी.

कहा गया कि केसरी की संगठन पर पकड़ मजबूत नहीं थी और उनके कमजोर नेतृत्व के कारण पार्टी को सोनिया गाँधी का फायदा नहीं पहुंचा. ये भी कहा गया कि केसरी के अंग्रेजी भाषी नहीं होने के कारण दक्षिण के नेताओ से सामंजस्य नही हो पा रहा है और केसरी को अध्यक्ष पद से हटाकर सोनिया गाँधी को लाने की कवायद शुरू हुई.

वही केसरी खुद को पीएम के दावेदार के रूप में देखने लगे थे इसलिए वो कांग्रेस अध्यक्ष पद का छोड़ने राजी नहीं थे और कांग्रेस पार्टी के संविधान के मुताबिक चुने गए अध्यक्ष को हटाने का प्रावधान नहीं है. ऐसे में सीताराम केसरी को कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटाने की योजना बनाई गई और इस योजना के सूत्रधार थे प्रणब मुखर्जी.

दरअसल केसरी के अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देने से मना करने के बाद कांग्रेस नेता जितेन्द्र प्रसाद प्रणब मुखर्जी के पास गए और केसरी को हटाकर सोनिया गाँधी को अध्यक्ष बनाने के लिए कोई रास्ता सुझाने को कहा. प्रणब दा ने जितेन्द्र प्रसाद से कहा कि वो केसरी से CWC की बैठक बुलाने को कहे.

केसरी के शुभचिंतको ने उन्हें CWC की बैठक नहीं बुलाने का सुझाव भी दिया लेकिन केसरी ने टाल दिया. 5 मार्च 1998 को CWC की बैठक बुलाई गई. 24 अकबर रोड कांग्रेस मुख्यालय में हुई उस बैठक में वही हुआ जो जिसका अंदाजा पहले से था. बैठक शुरू होने के बाद केसरी को 1998 हार की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफ़ा देकर सोनिया गाँधी को नामांकित करने के लिए कहा गया. केसरी बैठक छोड़ कर चले गए. फिर 9 मार्च को केसरी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दे दिया लेकिन कुछ देर बाद केसरी का मन बदल गया और कहा कि उन्होंने केवल मंशा जाहिर की थी. केसरी ने तय किया था कि वो AICC की आम बैठक में पद छोड़ेंगे.

लेकिन 14 मार्च की सुबह ही कांग्रेस नेता एक बार फिर प्रणब मुखर्जी के घर जुटे और फिर से CWC की बैठक बुलाई गई. केसरी पर इस्तीफ़ा देने का दबाव बनाया गया. केसरी बैठक खत्म करके अपने दफ्तर में चले गए. पार्टी उपाध्यक्ष जितेन्द्र प्रसाद की अगुवाई में फिर से बैठक शुरू हुई केसरी दोबारा बैठक में शामिल नहीं हुए. और सोनिया गाँधी को औपचारिक रूप से अध्यक्ष बनाने की घोषणा की गई.

और तत्काल केसरी की नेमप्लेट को उखाड़ कर कूड़े दान में फेंक दिया गया. और 24 अकबर रोड से जाते वक्त युवा कांग्रेस के कुछ नेताओ ने उनकी धोती खींच ली थी. कई लोगों ने दावा किया है कि सोनिया गाँधी जब पार्टी कार्यालय पंहुची तो पहले से वही मौजूद केसरी को कमरें में बंद कर दिया गया. वही उस वक्त केसरी के रोते हुए कांग्रेस कार्यालय से बाहर निकलने की खबर भी आई थी.

इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष की उनके पार्टी कार्यकर्ता ही धोती खींच ले. वही सीताराम केसरी जो कांग्रेस पार्टी के कोषाध्यक्ष थे उनके बारें में एक जुमला मशहूर था कि ना खाता न बही जो केसरी कहे वही सही” केसरी लम्बे समय तक पार्टी कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रहे.