अमेरिका की नई टैरिफ नीति से बढ़ी वैश्विक मंदी की आशंका, जेपी मॉर्गन ने वैश्विक मंदी को लेकर अनुमान बढ़ाकर 60 % किया


7 अप्रैल 2025 तक की स्थिति के आधार पर, वैश्विक मंदी की आशंका और अनुमान को लेकर कई विशेषज्ञों और संस्थानों ने अपने विचार व्यक्त किए हैं। मौजूदा आर्थिक परिदृश्य में कई कारक इस चर्चा को बढ़ावा दे रहे हैं, जिनमें व्यापार युद्ध, मुद्रास्फीति, और नीतिगत अनिश्चितताएँ शामिल हैं।

अनुमान और संभावनाएँ

जे.पी. मॉर्गन : हाल ही में जे.पी. मॉर्गन ने वैश्विक मंदी की संभावना को 40% से बढ़ाकर 60% कर दिया। इसका मुख्य कारण अमेरिका द्वारा अपने व्यापारिक साझेदारों पर लगाए गए टैरिफ को बताया जा रहा है, जिसके चलते वैश्विक विकास में कमी और कारोबारी विश्वास में गिरावट की आशंका है। जे.पी. मॉर्गन के मुख्य अर्थशास्त्री ब्रूस कासमैन ने कहा कि टैरिफ नीति से अमेरिकी और वैश्विक जीडीपी पर 0.5 प्रतिशत अंक का नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, जो व्यापारिक अनिश्चितता और प्रतिक्रियात्मक कदमों से और बढ़ सकता है।

गोल्डमैन सक्स : गोल्डमैन सक्स ने भी अमेरिकी मंदी की संभावना को 35% से बढ़ाकर 45% कर दिया। यह अनुमान ट्रंप प्रशासन की टैरिफ नीतियों और वैश्विक व्यापार युद्ध के बढ़ते जोखिम पर आधारित है। उनका मानना है कि ये नीतियाँ उपभोक्ता कीमतों को बढ़ा सकती हैं और कारोबारी निवेश को प्रभावित कर सकती हैं।

विश्व बैंक और आईएमएफ : विश्व बैंक ने जनवरी 2025 में अनुमान लगाया था कि वैश्विक विकास 2025 में 2.7% पर स्थिर रहेगा, जो महामारी से पहले के 3.2% के औसत से कम है। आईएमएफ ने भी 3.3% की वृद्धि का अनुमान लगाया, लेकिन चेतावनी दी कि मुद्रास्फीति और व्यापार तनाव इसे नीचे खींच सकते हैं। दोनों संस्थानों ने मंदी की आशंका को खारिज नहीं किया, खासकर यदि नीतिगत गलतियाँ हुईं।

सीएनबीसी सर्वे : मार्च 2025 के एक सर्वे में, अर्थशास्त्रियों ने मंदी की संभावना को 23% से बढ़ाकर 36% कर दिया, जिसमें टैरिफ को अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया गया। कॉरपोरेट सीएफओ ने भी 60% संभावना जताई कि 2025 की दूसरी छमाही में मंदी आ सकती है।

आशंका के कारण

टैरिफ और व्यापार युद्ध : अप्रैल 2025 में ट्रंप प्रशासन द्वारा घोषित टैरिफ (चीन पर 60% और अन्य देशों पर 10-20%) ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को प्रभावित किया है। इससे महंगाई बढ़ने और निर्यात-आयात में कमी की आशंका है। यूरोपीय सेंट्रल बैंक की प्रमुख क्रिस्टीन लगार्ड ने कहा कि इसका नकारात्मक प्रभाव वैश्विक होगा, जिसकी गंभीरता टैरिफ के दायरे और अवधि पर निर्भर करेगी।

मुद्रास्फीति का दबाव : वैश्विक स्तर पर मुद्रास्फीति घट रही है (आईएमएफ के अनुसार 2025 में 4.5% तक), लेकिन टैरिफ से कीमतें फिर से बढ़ सकती हैं। इससे केंद्रीय बैंकों को ब्याज दरें ऊँची रखने या बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है, जो विकास को और धीमा करेगा।

उपभोक्ता और कारोबारी विश्वास में कमी : कंज्यूमर कॉन्फिडेंस इंडेक्स (कॉन्फ्रेंस बोर्ड) लगातार पाँच महीनों से गिर रहा है और मार्च 2025 में 92.6 पर पहुँच गया, जो मंदी से पहले के स्तर के करीब है। कारोबारी निवेश भी अनिश्चितता के कारण प्रभावित हो रहा है।

क्षेत्रीय प्रभाव : अमेरिका में जीडीपी ग्रोथ अनुमान 2025 के लिए 1.7% तक घट गया है, यूरोप में कमजोर उत्पादकता और चीन में व्यापारिक दबाव मंदी के जोखिम को बढ़ा रहे हैं। भारत जैसे उभरते बाजार अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में हैं, लेकिन वैश्विक मंदी से पूरी तरह अछूते नहीं रहेंगे।

संभावित प्रभाव और तैयारी

वैश्विक मंदी की स्थिति में बेरोजगारी बढ़ सकती है, खासकर निर्माण, विनिर्माण और खुदरा जैसे क्षेत्रों में। कमोडिटी कीमतों में गिरावट संभव है, जो भारत जैसे आयातक देशों के लिए फायदेमंद हो सकता है, लेकिन निर्यात-निर्भर अर्थव्यवस्थाएँ प्रभावित होंगी। विशेषज्ञ सलाह दे रहे हैं कि सरकारें और केंद्रीय बैंक नीतिगत संतुलन बनाएँ, जैसे कि ब्याज दरों में कटौती और प्रोत्साहन पैकेज, ताकि मंदी के प्रभाव को कम किया जा सके

हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना “ है कि सही नीतियों के साथ मंदी से बचा जा सकता है। गोल्डमैन सैक्स का कहना है कि यदि टैरिफ सीमित रहे और केंद्रीय बैंक समय पर कदम उठाएँ, तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था 2% की वृद्धि बनाए रख सकती है। फिर भी, अनिश्चितता और जोखिमों का स्तर ऊँचा बना हुआ है, और 2025 के लिए वैश्विक अर्थव्यवस्था को लेकर सतर्कता बरतना जरूरी है।