क्या पण्डित नेहरु ने स्वयं को भारत रत्न देने के लिए प्रस्ताव भेजा था ?


भारत रत्न देश का सर्वोच सम्मान है. भारत रत्न की शुरुआत वर्ष 1954 में हुयी थी. इस वर्ष सी. राजगोपालचारी, डॉ. राधाकृष्ण और सीवी रमन को भारत रत्न से नवाजा गया था. भारत रत्न किसी ऐसी शख्सियत को दिया जाता है जिसने किसी क्षेत्र में मानवता के लिए बेहतर कार्य किये हो. रत्न की शुरुआत के समय ये प्रावधान था कि मरणोपरांत किसी को भारत रत्न से नही नवाजा जा सकता है लेकिन वर्ष 1955 में इस नियम को बदल दिया गया था. कई बार देश का ये सर्वोच्च पुरुस्कार विवादों में रहा है. पुरुस्कार दिए जाने को लेकर कई बार सवाल किए जाते है.

 

अमूमन ये प्रश्न उठता है कि क्या पंडित नेहरु ने खुद को इस सम्मान से नवाजा था ? इसको लेकर सोशल मीडिया पर कई तरह की भ्रान्तियाँ है. यह प्रश्न इसलिए भी उठता है क्योंकि पण्डित नेहरु को ये सम्मान प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए मिला था. जबकि नियम यह है कि प्रधानमंत्री राष्ट्रपति को भारत रत्न के लिए प्रस्ताव भेजते है.

 

वर्ष 1955 में पण्डित नेहरु को भारत रत्न को भारत रत्न से नवाजा गया था. पण्डित नेहरु उस सरकार के मुखिया थे जिस सरकार ने पण्डित नेहरु भारत रत्न देने की घोषणा की थी. सोशल मीडिया पर इस बारे में अनेक भ्रान्तियाँ फैलाई गयी है. सोशल मीडिया में इसे लेकर दुष्प्रचार किया जाता रहा है. लेकिन जवाहरलाल नेहरु को जब भारत रत्न देने की घोषणा की गयी थी उस वक्त नेहरु विदेश दौरे पर वियना में थे.

 

नेहरु को ये सम्मान भारत के राष्ट्रपति द्वारा जारी अध्यादेश के द्वारा दिया गया. तत्कालीन राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने नेहरु को भारत रत्न देने की पूर्ण जिम्मेदारी स्वीकार की और कहा कि “ चूंकि यह कदम मैंने स्व विवेक से, प्रधानमंत्री की अनुशंसा के बगैर एंव उनसे किसी सलाह के बिना उठाया है, इसलिए एक बार कहा जा सकता है कि यह निर्णय अवैधानिक है, लेकिन मैं जानता हूँ कि मेरे इस फैसले का स्वागत पूरे उत्साह से किया जायेगा.” पंडित नेहरु के साथ ही दार्शनिक व गाँधीवादी भगवानदास और इंजीनियर विश्वेसरैया को भारत रत्न से नवाजा गया था.