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दुनिया में बढ़ती हिंसा और बेबस इंसान, मगर इसके लिए जिम्मेदार कौन है ? आने वाले समय में दुनिया के सामने सबसे बड़ा खतरा कट्टरपंथ है, जिसका सामना करना दुनिया के लिए आसान नहीं होगा, क्योंकि यह विचारधारा एक विशेष सोच के साथ काम करती है और किसी सोच को बदलने में सदिया लग जाती है।
दरअसल कट्टरपंथ कोई नया शब्द नहीं है, इसका प्रयोग एक यूरोपीय देश में राजा को खदेड़ने के लिए एक विशेष संगठित समुदाय के लिए किया गया था. मगर आज के समय में इस शब्द के मतलब और मायने दोनों बदल गए हैं. दुनिया की बड़ी आबादी को एक विशेष रणनीति के तहत इसकी ओर धकेला जा रहा है, जिसमें बड़ा योगदान सोशल मीडिया भी दे रहा है. आजकल की तकनीकी किसी भी व्यक्ति तक अपनी बात तुरंत और प्रभावी ढंग से पहुंचाने में अपनी बड़ी भूमिका अदा कर रही है. कट्टरपंथ ने अपनी जड़े फैलाने का सबसे बड़ा हथियार अब इसी तकनीकी को बनाया है.
वर्तमान दौर की बात करें तो कोई भी देश कट्टरपंथी विचारधारा रखने वाले लोगों से अछूता नहीं है. हमारे देश में ये जिस तरह से देश को बांट रहा है वह हमारे संविधान की गरिमा को तो ठेस पहुंचा ही रहा है, साथ में हमारे संविधान में वर्णित एकता और बंधुत्व जैसे शब्दों को लज्जित कर रहा है।
ISIS और इसके जैसे कई संगठनों ने कट्टरपंथ का असली चेहरा दुनिया को दिखाया है. मगर दुनिया पर यह विचारधारा हावी होती जा रही है. सीरिया आज युद्ध का अखाड़ा बन चुका है इसकी वजह कहीं ना कहीं यही कट्टरपंथ है. ईरान और इराक जैसे देशों की अर्थव्यवस्था को घुटनों के बल लाने वाला भी यही कट्टरपंथ है. इन देशों ने अपनों की अनगिनत लाशें देखी है, आम जन को बेरहमी से अपना शिकार बना दिया.
वहीं पंथनिरपेक्ष ने हमें इंसानियत सिखाई है, जो हमें बताती है हर इंसान को हक है अपने मुताबिक अपनी जिंदगी जीने का. धर्म और जाति से ऊपर उठकर खुद से पहले दूसरों की मदद करने की सीख देता है पंथनिरपेक्ष. लोगों के विचारों में जिंदा इंसानियत पंथनिरपेक्षता की परिचायक है और यह लोकतंत्र की सबसे बड़ी पहचान होती है. अगर कट्टरपंथ इसी तरह से हर व्यक्ति को जकड़ता रहा तो वो वक्त दूर नहीं है, जब इस दुनिया में इंसान और इंसानियत का वजूद ही मिट जाएगा.
अमेरिका, रूस जैसे देश कट्टरपंथ जैसी विचारधाराओं को बढ़ावा देते हैं और फिर उनसे जुड़े लोग जब उन्हीं को नुकसान पहुंचाने लगते हैं तो फिर उन्हें मार कर वाहवाही लूटते हैं सच्चाई से कब तक मुंह मोड़ते रहेंगे ये देश. अब ये भी जानते हैं कि यह विचारधारा किसी आदमी की मौत के साथ नहीं मरेगी और तब तक इंसानियत का गला घोट ही रहेगी, जब तक इंसान के अंदर तक घर कर चुकी ऐसी विचारधाराओं को बदला नहीं जाता. मगर ये देश इस बात को मानेंगे नहीं कि अब ये हथियारों की लड़ाई नहीं रही, अब यह विचारों की लड़ाई बन चुकी है जो विचारों से खत्म की जा सकती है.
मतभेद होने चाहिए, बहसें होनी चाहिए, यही तो एक लोकतंत्र की सच्ची निशानी है. मगर किसी पर विचारधाराओं को थोपना किसी आधार पर न्याय संगत नहीं ठहराया जा सकता. अगर आप इतिहास उठा कर देखेंगे तो जानेंगे कि कट्टरपंथ ने आज तक ना जाने कितने देशों और उससे जुड़े लोगों को अंदर से खोखला कर दिया है, अमेरिका आज जल रहा है वह आग कट्टरपंथ ने ही लगाई है.
दरअसल कट्टरपंथ का मतलब बड़ा व्यापक है इसे इस तरह से समझा जा सकता है कि एक विशेष समुदाय के लोग जब दूसरे समुदाय के लोगों के खिलाफ साजिश के तहत कोई काम करते हैं और अपनी विचारधारा को उन पर थोपना चाहते हैं तो यह भी कट्टरपंथी सोच है. अमेरिका ने कभी सोचा नहीं होगा कि जिस कट्टरपंथी सोच को उसने अपने फायदे के लिए कभी पनाह दी थी वही उसे इतनी बुरी तरह से नोंच डालेगी कि उसे संभलने तक का वक्त नहीं मिलेगा. किसी भी देश को यह भी याद रखना चाहिए कि सिर्फ ताकत के बल पर किसी विचारधारा को खत्म नहीं किया जा सकता और यह दूसरे देशों के लिए सबक है कि वक्त रहते कट्टरपंथी विचारधाराओं के खिलाफ खड़े होकर इससे जुड़े लोगों को समझाया जाए, उन्हें इसके दुष्परिणामों के बारे में जागरूक किया जाए और ऐसी विचारधाराओं से बचने की सलाह दी जाए.
अपने धर्म या समुदाय को मानने और उसे प्रसारित करने तक ठीक है मगर राष्ट्र से बढ़कर कोई धर्म या समुदाय नहीं होता है और अगर आप किसी विचारधारा को मानने के लिए लोगों को बाध्य कर रहे हैं तो इसे किसी मूल्य पर उचित नहीं कहा जा सकता.
- रमेश राही