ट्रम्प की नई टैरिफ नीति से दुनिया भर के बाजार गिरावट, वैश्विक मंदी की आशंका ; जानिए भारत पर क्या प्रभाव होंगे


डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी दूसरी पारी में 2 अप्रैल 2025 को "लिबरेशन डे" के रूप में घोषित करते हुए एक नई टैरिफ नीति की शुरुआत की। इस नीति के तहत, अमेरिका ने वैश्विक व्यापार को फिर से संतुलित करने के लिए "रेसिप्रोकल टैरिफ" (प्रतिशोधी टैरिफ) लागू किए हैं। इसका मकसद अमेरिकी विनिर्माण को बढ़ावा देना, व्यापार घाटे को कम करना और विदेशी देशों द्वारा अमेरिकी सामानों पर लगाए गए ऊंचे टैरिफ का जवाब देना है। मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:

10% बेसलाइन टैरिफ : 5 अप्रैल 2025 से शुरू होकर, सभी देशों से आयातित सामानों पर 10% का आधारभूत टैरिफ लागू किया गया।

देश-विशिष्ट रेसिप्रोकल टैरिफ : 9 अप्रैल 2025 से, विभिन्न देशों पर उनके द्वारा अमेरिकी सामानों पर लगाए गए टैरिफ के आधार पर अतिरिक्त टैरिफ लागू होंगे। भारत पर यह दर 26% निर्धारित की गई है, वही अन्य देशों पर जैसे चीन: 54% वियतनाम: 46% बांग्लादेश: 37% यूरोपीय संघ: 20% निर्धारित की गई है।

छूट प्राप्त क्षेत्र : कुछ उत्पादों जैसे फार्मास्यूटिकल्स, सेमीकंडक्टर्स, ऊर्जा उत्पाद (तेल, गैस), और कॉपर को इन टैरिफ से छूट दी गई है। ऑटोमोबाइल और स्टील/एल्यूमिनियम पर पहले से ही 25% टैरिफ लागू हैं, इसलिए वे इस नई नीति से प्रभावित नहीं होंगे।

उद्देश्य : ट्रंप का दावा है कि यह नीति अमेरिकी श्रमिकों को प्राथमिकता देगी और व्यापार घाटे को कम करेगी, जिसे वे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा मानते हैं। उन्होंने इसे "आर्थिक स्वतंत्रता की घोषणा" करार दिया।

ट्रंप ने कहा कि यह टैरिफ तब तक लागू रहेंगे जब तक व्यापार घाटे और गैर-पारस्परिक व्यवहार का खतरा खत्म नहीं हो जाता। साथ ही, उन्होंने देशों को चेतावनी दी कि अगर वे जवाबी टैरिफ लगाते हैं, तो अमेरिका और सख्त कदम उठा सकता है।

अमेरिका की नई टैरिफ नीति से भारत को क्या नुकसान

ट्रंप की नई टैरिफ नीति, जो 5 अप्रैल 2025 से लागू हुई और 9 अप्रैल से भारत पर 26% का रेसिप्रोकल टैरिफ लगाएगी, भारत को कई तरह से नुकसान पहुँचा सकती है। यहाँ इसका विस्तृत विश्लेषण है कि भारत को किन क्षेत्रों में और कैसे नुकसान हो सकता है:

निर्यात में कमी

भारत का अमेरिका को निर्यात 2023-24 में $77 बिलियन से अधिक था, जिसमें जेम्स एंड ज्वैलरी ($11.88 बिलियन), इलेक्ट्रॉनिक्स ($14.39 बिलियन), मशीनरी ($7.1 बिलियन), और टेक्सटाइल्स ($2.76 बिलियन) प्रमुख हैं। 26% टैरिफ से इन उत्पादों की कीमत बढ़ेगी, जिससे अमेरिकी बाजार में उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता कम हो सकती है।

विशेषज्ञों का अनुमान है कि भारत के निर्यात में $2-7 बिलियन की कमी आ सकती है, जिससे जीडीपी ग्रोथ पर 5-10 बेसिस पॉइंट्स का असर पड़ सकता है।

नुकसान : 26% टैरिफ से इन उत्पादों की कीमत अमेरिकी बाजार में बढ़ जाएगी, जिससे उनकी मांग और प्रतिस्पर्धात्मकता कम होगी। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) का अनुमान है कि भारत के निर्यात में $2-7 बिलियन की कमी आ सकती है।

उदाहरण: सूरत का हीरा उद्योग, जो अमेरिका पर 50% से अधिक निर्भर है, प्रभावित होगा। कीमतें बढ़ने से अमेरिकी खरीदार अन्य स्रोतों (जैसे अफ्रीका) की ओर रुख कर सकते हैं।

आर्थिक विकास पर असर

जीडीपी पर प्रभाव : भारत का निर्यात जीडीपी का लगभग 20% है, जिसमें अमेरिका सबसे बड़ा साझेदार है। टैरिफ से निर्यात में 5-10% की कमी होने पर जीडीपी वृद्धि दर पर 5-10 बेसिस पॉइंट्स (0.05-0.1%) का नकारात्मक असर पड़ सकता है।

मंदी का जोखिम : वैश्विक व्यापार में अस्थिरता और अमेरिकी मंदी की आशंका (जैसा कि 7 अप्रैल को सेंसेक्स में 5.19% गिरावट से संकेत मिला) भारत की वृद्धि को और प्रभावित कर सकती है।

नौकरियों और उद्योगों पर दबाव

निर्यात-निर्भर उद्योग : टेक्सटाइल्स (तमिलनाडु, गुजरात), जेम्स एंड ज्वैलरी (सूरत), और ऑटो पार्ट्स (पुणे, चेन्नई) जैसे क्षेत्रों में मांग घटने से उत्पादन कम होगा।

नौकरी छंटनी : छोटे और मध्यम उद्यम (SMEs), जो इन सेक्टर्स में बड़े नियोक्ता हैं, लागत कम करने के लिए कर्मचारियों की छंटनी कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, टेक्सटाइल सेक्टर में 1 मिलियन से अधिक नौकरियाँ जोखिम में आ सकती हैं।

आपूर्ति श्रृंखला प्रभाव : ऑटो पार्ट्स और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में मंदी से सहायक उद्योग (जैसे स्टील, प्लास्टिक) भी प्रभावित होंगे।

महंगाई और आयात लागत में वृद्धि

वैश्विक प्रभाव : टैरिफ युद्ध से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित होगी, जिससे भारत के आयात (जैसे कच्चा तेल, मशीनरी, इलेक्ट्रॉनिक्स पार्ट्स) महंगे होंगे।

उदाहरण : भारत अपनी 85% तेल आवश्यकताएँ आयात करता है। अगर तेल की कीमतें बढ़ती हैं (हालाँकि ऊर्जा उत्पादों को छूट है, लेकिन परिवहन लागत बढ़ सकती है), तो पेट्रोल-डीज़ल की कीमतें और महंगाई बढ़ेगी।

मुद्रा पर दबाव : आयात बिल बढ़ने से रुपये पर दबाव पड़ेगा, जो वर्तमान में 83-84/$ के स्तर पर है। यह 85-86 तक जा सकता है, जिससे आयात और महंगा होगा।

शेयर बाजार और निवेश पर असर

बाजार में गिरावट : 7 अप्रैल 2025 को सेंसेक्स में 3914.75 अंकों (5.19%) की गिरावट ट्रंप की टैरिफ नीति से उत्पन्न वैश्विक अनिश्चितता का परिणाम थी। ऑटो (टाटा मोटर्स -8.29%), स्टील, और फार्मा जैसे सेक्टर्स सबसे अधिक प्रभावित हुए।

FII बहिर्गमन : विदेशी संस्थागत निवेशक (FIIs) ने हाल के दिनों में $10 बिलियन से अधिक की बिकवाली की है। टैरिफ से अनिश्चितता बढ़ने पर यह और तेज़ हो सकता है, जिससे बाजार में और गिरावट आएगी।

कंपनी लाभ : निर्यात-निर्भर कंपनियों (जैसे टाटा मोटर्स, बजाज ऑटो, भारत फोर्ज) के मुनाफे में कमी आएगी।

व्यापार संतुलन पर प्रभाव

अमेरिका के साथ घाटा : भारत का अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष (surplus) $23 बिलियन है। टैरिफ से यह कम हो सकता है, क्योंकि निर्यात घटेगा और जवाबी टैरिफ से आयात प्रभावित नहीं होगा (अभी भारत ने जवाबी टैरिफ की घोषणा नहीं की है)।

चीन का लाभ : भारत अगर अमेरिका से कम आयात करता है, तो उसे चीन या अन्य देशों से खरीदना पड़ सकता है, जो ट्रंप की नीति के खिलाफ जाएगा और भारत के लिए महंगा साबित हो सकता है।

क्षेत्र-विशिष्ट नुकसान

फार्मा  : हालाँकि फार्मास्यूटिकल्स को छूट है, लेकिन कच्चे माल (APIs) का आयात महंगा हो सकता है, जिससे दवा उत्पादन लागत बढ़ेगी।

आईटी सेक्टर : अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि अमेरिकी मंदी से वहाँ की कंपनियाँ भारत में आउटसोर्सिंग कम कर सकती हैं।

निष्कर्ष

ट्रंप की टैरिफ नीति से भारत को अल्पकालिक नुकसान अवश्य होगा, खासकर निर्यात-निर्भर उद्योगों, रोज़गार, और शेयर बाजार पर। सबसे बड़ा प्रभाव टेक्सटाइल्स, जेम्स, और ऑटो सेक्टर पर पड़ेगा, साथ ही महंगाई और रुपये पर दबाव बढ़ेगा। हालाँकि, भारत की आंतरिक मांग और अपेक्षाकृत कम टैरिफ (चीन के 54% की तुलना में 26%) इसे कुछ हद तक संभालने में मदद कर सकते हैं। सरकार अगर जवाबी रणनीति (जैसे BTA या आत्मनिर्भरता) पर काम करती है, तो नुकसान को सीमित किया जा सकता है।